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बांस हस्तशिल्प: बांस का निर्माता होने के कारण भारत में बांस से बने हस्तशिल्प सबसे इको-फ्रेंडली शिल्प होते हैं। बांस से कई तरह का सामान बनते हैं, जैसे टोकरी, गुडि़या, खिलौने, चलनी, चटाई, दीवार पर लटकाने का सामान, छाते के हैंडल, क्राॅसबो, खोराही, कुला, डुकुला, काठी, गहने के बक्से आदि। बांस का ज्यादातर हस्तशिल्प पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में बनता है।
बंेत हस्तशिल्प: बेंत का सामान भारत में हस्तशिल्प का प्रसिद्ध रुप है जिसमें उपयोगी वस्तुएं जैसे ट्रे, टोकरियां, स्टाइलिश फर्नीचर आदि शामिल हैं।
बेल मेटल हस्तशिल्प: पीतल के कड़े रुप जिसका उपयोग घंटी बनाने में किया जाता है उसे बेल मेटल कहते हैं। इस कड़ी मिश्र धातु का उपयोग सिंदूर के बक्से, कटोरे, मोमबत्ती स्टेंड, पेंडेंट और कई शिल्प बनाने में किया जाता है। बेल मेटल हस्तशिल्प ज्यादातर मध्यप्रदेश, बिहार, असम और मणिपुर में प्रचलित है। मध्य प्रदेश में हस्तशिल्प के इस रुप को आदिवासी शिल्प के रुप में जाना जाता है।
हड्डी और सींग हस्तशिल्प: ओडिशा के राज्य में जन्मे हड्डी और सींग के हस्तशिल्प पक्षी और जानवरों के रुप बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं जो कि बहुत असली और जीवंत लगते हैं। इसके अलावा पैन स्टैंड, गहने, सिगरेट के डिब्बे, टेबल लैंप, मिर्च और नमक के सेट, शतरंज सेट, नैपकिन रिंग, लाफिंग बुद्धा आदि ओडिशा, कर्नाटक, केरल और उत्तर प्रदेश में बनाए जाते हैं।
पीतल हस्तशिल्प: पीतल के सामानों की ड्यूरेबिलिटी के कारण पीतल के बर्तन मशहूर हैं। पीतल से बने सामान जैसे रेंगते कृष्ण या भगवान गणेश की विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां, फूलदान, टेबल टाॅप, छेदवाले लैंप, गहने के बक्से, हुक्का, खिलौने, वाइन ग्लास, प्लेट्स, फलदान और कई वस्तुएं भारतीय घरों में इस्तेमाल होती हैं। इन कारीगरों को कंसारी के तौर पर जाना जाता है। पीतल के बर्तन ज्यादातर राजस्थान में बनाए जाते हैं।
मिट्टी के हस्तशिल्प : सिंधु घाटी सभ्यता में उत्पत्ति होने के बाद से मिट्टी के बर्तन भारत में हस्तशिल्प का सबसे प्राचीन रुप हैं। इस काम में संलग्न लोगों को कुम्हार कहा जाता है। अपने विश्व प्रसिद्ध टेराकोटा रुप के अलावा मिट्टी के हस्तशिल्प में लाल बर्तन, ग्रे बर्तन और काले बर्तन के रुप हैं। उत्तर प्रदेश काले पेंट के बर्तनों के लिए जाना जाता है। पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर के अलावा बीकानेर, लखनउ, पुणे और हिमाचल प्रदेश में मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं। मिट्टी के बर्तन, सजावटी सामान, गहने आदि पूरे देश में काफी इस्तेमाल किए जाते हैं।
जूट हस्तशिल्प: पूरी दुनिया में जूट हस्तशिल्प में जूट कारीगरों ने अपनी खास जगह बनाई है। जूट शिल्प की विस्तृत रेंज में बैग, आॅफिस स्टेशनरी, चूडि़यंा और अन्य गहने, फुटवेयर, वाॅल हैंगिंग और कई सामान शामिल हैं। पश्चिम बंगाल, असम और बिहार सबसे बड़े जूट उत्पादक हैं और भारत में जूट हस्तशिल्प बाजार के अगुवा भी हैं।
कागज हस्तशिल्प: चटकदार रंगों वाले कागज को मिलाकर कई शिल्प जैसे पतंग, मास्क, सजावटी फूल, लैंप शेड, कठपुतली, हाथ के पंखे आदि बनाए जाते हैं। मुगल काल में विकसित हुआ कुट्टी भारत में कागज हस्तशिल्प का प्रसिद्ध रुप है। यह शिल्प उद्योग मुख्य तौर पर दिल्ली, राजगीर, पटना, गया, अवध, अहमदाबाद और इलाहाबाद में स्थित है। इसके अलावा कागज के शिल्पकार लगभग हर शहर में हैं।
बुनाई या कढ़ाई हस्तशिल्प: दो धागों के सेट ताना और बाना से बुनकर कपड़ों के उत्पादन को बुनाई कहा जाता है। हस्तशिल्प का यह पारंपरिक रुप खासतौर पर गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मिलता है। बुनाई का प्रसिद्ध रुप बांधनी जामनगर और राजकोट में बनाया जाता है। बिहार और कर्नाटक अपने कढ़ाई के काम के लिए जाना जाता है।
लकड़ी हस्तशिल्प: पत्थर की मूर्तियों के अस्तित्व में आने के बहुत पहले से लकड़ी हस्तशिल्प भारत में प्रचलित था। कुशल कारीगरों द्वारा लकड़ी के टुकड़े को आकार देकर विभिन्न सामान बनाए जाते थे। गुजरात, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, केरल और उत्तर प्रदेश अपने अनूठे लकड़ी के काम के लिए जाने जाते हैं। कुल्हाड़ी, खिलौने, बर्तन, सजावटी सामान, गहने और कई सजावटी घरेलू सामान जैसे लैंप शेड, मोमबत्ती स्टैंड, सिंदूर के बक्से, गहनों के बक्से, चूड़ी होल्डर आदि कुछ ऐसे सामान्य लकड़ी के शिल्प हैं जो लगभग हर भारतीय घर में उपयोग में आते हैं।
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