सतत विकास के लिए बुनियादी विज्ञान : चुनौतियाँ तथा सभावनाएँ पर एक निबंध बताओ।​

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स्वतंत्रता के बाद भारत के विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अहम भूमिका रही है। आजादी के बाद से विज्ञान के क्षेत्र को प्राथमिकता दी गयी है। वर्तमान सरकार भी विज्ञान के प्रति पूर्ण समर्पित है। इसका सबूत है कि पिछले चार वर्षों में इस क्षेत्र में बजट आवंटन में नब्बे प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का उल्लेख करते हुए विज्ञान के माध्यम से विकास के अवसरों का जिक्र भी किया था।

जनमानस में वैज्ञानिक अनुप्रयोग के महत्व के संदेश को व्यापक तौर पर प्रसारित करने के लिए हर वर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस आयोजन के द्वारा मानव कल्याण के लिये विज्ञान के क्षेत्र में घटित होने वाली प्रमुख गतिविधियों, प्रयासों और उपलब्धियों को प्रदर्शित किया जाता है।

विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति समाज में जागरूकता लाने और वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद की पहल पर इस अवसर पर पूरे देश में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एवं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम “सतत भविष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी” विषय पर आयोजित था।

असल में हर वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की एक केन्द्रीय विषय-वस्तु होती है, जिसके इर्द-गिर्द पूरे देश में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस साल की थीम ‘सतत भविष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी’ है।

इस कार्यक्रम में देश के प्रमुख वैज्ञानिकों सहित विद्यार्थियों ने भाग लिया। जेएनयू के कुलपति प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने “सतत भविष्य के लिए प्रौद्योगिकी” विषय पर बोलते हुए कहा कि सतत भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में अधिक निवेश करना होगा। सौर ऊर्जा के महत्व को स्वीकारते हुए उन्होंने कहा कि ''सौर ऊर्जा उत्पादन में उन्नत बैट्री का विकास किया जाना आवश्यक है। ऐसी बैट्रियों का विकास होना चाहिए जो छोटी और वहनीय होने के साथ ही अधिक दक्ष हो। इसके लिए बैट्ररी निर्माण के लिए लीथियम की बजाय अन्य स्रोत खोजना होगा जो प्रचुर मात्रा में हो और उसके लिए हमें किसी अन्य देश पर निर्भर न रहना पड़े। उन्होंने स्वास्थ्य, जल संरक्षण, कृषि आदि क्षेत्रों के तीव्र विकास के लिए नयी तकनीकों के निर्माण की बात भी कही।”

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि “सर सी वी रामन सहित अनेक भारतीय वैज्ञानिकों ने विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। इसके लिए हमें विज्ञान ही नहीं हर क्षेत्र में सतत विकास को प्राथमिकता देनी होगी। हमें सतत विकास के उस चक्र को समझना होगा जो उस ज्ञान पर आधारित है जो प्रयोगशालाओं एवं वैज्ञानिक संस्थानों से उत्पन्न होकर समाज के लिए लाभदायक सिद्ध होता है। हमें प्रौद्योगिकी से समाज को जोड़ने के लिए दीर्घकालीन सोच का विकास करना होगा। इसके लिए कृत्रिम बौद्धिकता, बिग डाटा जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना होगा।”

राष्ट्रीय विज्ञान संग्राहलय परिषद्, कोलकाता के महानिदेशक श्री ए.के. मानेकर ने 'इक्कीसवीं सदीं में विज्ञान संचार के समक्ष चुनोतियां एवं संभावना'' विषय पर बोलते हुए कहा कि विज्ञान केवल छात्रों के लिए ही नहीं हम सभी के लिए है। विज्ञान का संबंध हर व्यक्ति से है। इसी उद्देश्य के साथ विज्ञान संचार भी समाज के मध्य वैज्ञानिक चेतना के विकास के लिए कार्यरत है। विज्ञान प्रसार, राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् , एनसीईआरटी, यूजीसी, निस्केयर जैसे अनेक संस्थाएं विज्ञान संचार के लिए कार्यरत हैं। लेकिन फिर भी विज्ञान संचार के क्षेत्र में अनेक चुनौतियां हैं। उन चुनौतियों के लिए विज्ञान लेखकों एवं विज्ञान संचारकों को तैयार रहना है। आधुनिक जनसंचार माध्यमों द्वारा समाज में व्याप्त अंधविश्वासों के बारे में सही जानकारी को प्रसारित करना आवश्यक है।

आज राष्ट्रीय विज्ञान संग्राहलय परिषद् के द्वारा विकसित विज्ञान केन्द्र, विज्ञान पार्क, विज्ञान नगरी केवल विज्ञान के प्रदर्शनों तक सीमित न होकर जनमानस में विभिन्न वैज्ञानिक विषयों के प्रति जागरूकता का प्रसार कर रहे हैं चाहे बात जलवायु परिवर्तन की हो या फिर जीनांतरित फसलों की। जल संरक्षण से लेकर सतत विकास तक के हर एक विषय पर विज्ञान संग्राहलय जनमानस में जागरूकता का प्रसार कर रहे हैं।

इस अवसर पर राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद के प्रमुख श्री चंदर मोहन एवं शोध एवं विकास प्रभाग, जेएनयू के निदेशक डॉ. रूपेश चतुर्वेदी प्रो विभा टंडन सहित अनेक वरिष्ठ वैज्ञानिक भी उपस्थित थे।

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