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Political ScienceAuthor:
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1 year agoAnswer:
ऐतिहासिक कारण -
सामान्यतः शीत युद्ध की उत्पत्ति का कारण सन् 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति मानी जाती है। बोल्शेविक क्रान्ति के पश्चात् रूस में साम्यवाद का उदय हुआ और पश्चिमी राष्ट्र इसके बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर शंकित होने लगे। उन्होंने इसे विश्व में फैलने से रोकने के लिए इसको समाप्त करने का विचार बना लिया तथा हिटलर को रूस पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया गया।
(2) द्वितीय मोर्चे का प्रश्न -
द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर द्वारा सावि अत्यधिक हानि पहुँचाए जाने पर स्टालिन ने मित्र राष्ट्रों से अनुरोध किया कि व के विरुद्ध दूसरा मोर्चा खोल दें,लेकिन रूजवेल्ट और चर्चिल काफी समय तक टालते रहे । इससे स्टालिन की समझ में यह बात आ गई कि पश्चिमी देश रूस को नष्ट हुआ देखना चाहते हैं।
(3) युद्धोत्तर उद्देश्य में अन्तर -
सोवियत संघ और पश्चिमी देशों के युद्धोपरान्त उद्देश्यों में भी अन्तर था । भविष्य में जर्मनी से अपनी सुरक्षा के लिए सोवियत संघ यूरोप के देशों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाना चाहता था, लेकिन पश्चिमी राष्ट्र सोवियत संघ के प्रभाव क्षेत्र को सीमित करने के लिए कटिबद्ध थे।
(4) सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते की अवहेलना -
सन् 1945 में याल्टा सम्मेलन में स्टालिन, रूजवेल्ट और चर्चिल ने कुछ समझौते किए थे, लेकिन स्टालिन ने पोलैण्ड में अपनी संरक्षित लूबनिन सरकार लादने का प्रयत्न किया। उसने चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया, हंगरी तथा रूमानिया से युद्ध-विराम समझौते और याल्टा और पोट्सडाम सन्धियों का उल्लंघन किया और मित्र राष्ट्रों से सहयोग करने से इन्कार कर दिया।
(5) रूस द्वारा बाल्कन समझौते का अतिक्रमण -
सोवियत संघ ने सन् 1944 में चर्चिल के पूर्वी यूरोप के विभाजन को स्वीकार कर लिया था। किन्तु युद्ध की समाप्ति पर सोवियत रूस ने समझौते का अतिक्रमण करते हुए साम्यवादी दलों को खुलकर सहायता दी और यहाँ सर्वहारा की तानाशाही स्थापित कर दी गई। इससे पश्चिमी देशों का नाराज होना स्वाभाविक था।
(6) ईरान से सोवियत सेना का न हटाया जाना —
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत सेना ने ब्रिटेन की सहमति से उत्तरी ईरान पर अधिकार जमा लिया था। युद्धोपरान्त सोवियत संघ ने वहाँ से सेना हटाने से इन्कार कर दिया। बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव के फलस्वरूप ही सोवियत संघ ने वहाँ से सेनाएँ हटाईं। इससे भी पश्चिमी राष्ट्र नाराज हो गए।
(7) यूनान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप –
सन् 1944 में एक समझौते के द्वारा यूनान.ब्रिटेन के अधिकार क्षेत्र में स्वीकार कर लिया गया था, परन्तु बाद में सोवियत संघ के प्रोत्साहन से पड़ोसी साम्यवादी राष्ट्रों-अल्बानिया, यूगोस्लाविया एवं बुल्गारिया आदि द्वारा यूनानी कम्युनिस्ट छापामारों को परम्परागत राजतन्त्री शासन उखाड़ फेंकने के लिए सहायता दी जाने लगी।
(8) टर्की पर सोवियत संघ का दबाव -
युद्ध के तुरन्त बाद सोवियत संघनेरी के कुछ प्रदेश और वास्फोरस में नाविक अड्डा बनाने का अधिकार देने के लिए दबाव डालना शुरू किया, परन्तु पश्चिमी देश इसके विरुद्ध थे।
(9) परमाणु बम का आविष्कार -
शीत युद्ध के सूत्रपात का एक अन्य कारण परमाणु बम का आविष्कार था। अमेरिका और ब्रिटेन को परमाणु बम पर अभिमान हो गया था। सोवियत संघ से परमाणु बम के रहस्य को छुपाया गया। अतः इस कारण भी दोनों पक्षों में मनोमालिन्य की स्थिति उत्पन्न हो गई।
(10) सोवियत संघ द्वारा अमेरिका विरोधी प्रचार -
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के पूर्व से ही सोवियत संघ के प्रमुख समाचार-पत्रों में अमेरिका विरोधी लेख प्रकाशित होने लगे। अमेरिका ने इस प्रचार अभियान का विरोध किया।
(11) पश्चिम की सोवियत विरोधी नीति और प्रचार अभियान -
पश्चिम की सोवियत विरोधी नीति ने जलती आग में घी का कार्य किया। 18 अगस्त, 1945 को अमेरिका के राज्य सचिव और ब्रिटेन के विदेश मन्त्री ने अपनी विज्ञप्ति में कहा कि "हमें तानाशाही के एक स्वरूप के स्थान पर उसके दूसरे स्वरूप के संस्थापन को रोकना है।" अत: सोवियत संघ एवं अमेरिका में मतभेद और उग्र हो गए।
(12) बलिन की नाकेबन्दी -
सोवियत संघ द्वारा लन्दन प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए बलिन की नाकेबन्दी कर दी गई। इसे पश्चिमी देशों ने सुरक्षा परिषद् में रखा और शान्ति के लिए घातक बताया।।
(13) सोवियत संघ द्वारा वीटो का बार-बार प्रयोग -
सोवियत संघ ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रत्येक प्रस्ताव को निरस्त करने के लिए बार-बार वीटो का प्रयोग किया। वीटो के इस दुरुपयोग के कारण पश्चिमी राष्ट्र सोवियत संघ की आलोचना करने लगे।
(14) सोवियत संघ की लैण्ड -
लीज सहायता बन्द करना-लैण्ड-लीज एक्ट के अन्तर्गत सोवियत संघ को अमेरिका द्वारा दी जा रही अल्प सहायता राष्ट्रपति टुमेन द्वारा बन्द किए जाने पर सोवियत संघ असन्तुष्ट हो गया। इससे भी शीत युद्ध को बढ़ावा मिला।
(15) सैद्धान्तिक व वैचारिक संघर्ष -
यह एक वैचारिक संघर्ष था, क्योंकि अमेरिका एक पूँजीवादी राष्ट्र है, जबकि सोवियत संघ साम्यवादी 'विश्व के मजदूरों एक हो जाओ' की साम्यवादी घोषणा 'बुर्जुआ पूँजीवादी व्यवस्था' को नष्ट करने का खुला ऐलान था।
(16) शक्ति संघर्ष -
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् दो शक्तिशाली राष्ट्रों का उदय हुआ-अमेरिका और सोवियत संघ। इन दोनों राष्ट्रों में विश्व में अपने प्रभाव को कायम रखने के लिए शक्ति संघर्ष अनिवार्य था। मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति संघर्ष की राजनीति है।"
(17) हित संघर्ष -
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अनेक मुद्दों पर अमेरिका और सोवियंत संघ के हित एक-दूसरे के विरुद्ध थे और दोनों अपने स्वाथों के लिए संघर्षरत थे।
उपर्युक्त सभी कारणों के फलस्वरूप शीत युद्ध की भावना का विस्तार हुआ।
Author:
cricketwyvz
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2शीत युद्ध के कारण व परिणाम की व्याख्या कीजिए ?
कारण...
शीतयुद्ध से मतलब बिना हथियारों की लड़ाई । ये एक ऐसा युद्ध था जिसमें सीधे तौर पर कोई युद्ध नही लड़ा गया, बल्कि ये दो गुटों द्वारा एक-दूसरे को धमकी देने तक सीमित था, और एक-दूसरे को आक्रमण का भय दिखाकर अपने-अपने हथियारों के भंडार को बढ़ाने तक सीमित था।
इसमें अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वैचारिक मतभेद थे । और ये दोनों महाशक्तियां अपना गुट बढ़ाकर अपना वर्चस्व कायम करना चाहतीं थीं । ये एक प्रकार का कूटनीतिक युद्ध था जो कि संचार माध्यमों जैसे कि रेडियो, पत्र-पत्रिकाओं, टीवी और अन्य माध्यमों द्वारा आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलाकर लड़ा गया । अमेरिका और सोवियत संघ सीधे शामिल न होकर अप्रत्यक्ष रुप से शामिल थे ।
परिणाम...
शीतयुद्ध दो महाशक्तियों में अपने वर्चस्व को लेकर मची होड़ के परिणाम स्वरूप उपजा था ।
दोनों महाशक्तियों और उनके गुटों में प्रतिद्वंदिता अपने चरम पर थी, इस कारण उन्हें विरोधी पक्ष द्वारा हमले का भय रहता था, इस कारण संभावित युद्ध की आशंका के कारण दोनों पक्षों नें भरपूर हथियार जमा कर लिये और उनमें अधिक से अधिक हथियार जमा करने की होड़ लग गयी । हालांकि वास्तव में ऐसे किसी युद्ध की नौबत नही आयी ।
धीरे-धीरे समय गुजरता गया और दोनों पक्षों के देशों में नेतृत्व परिवर्तन होते गये, शीतयुद्ध का तनाव थोड़ा-थोड़ा कम होने लगा था । चूंकि एक-दूसरे से होड़ में दोनों पक्षों ने बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार जमा कर लिये थे और जिनका गलत उपयोग होने पर संपूर्ण मानवजाति को खतरा हो सकता था ।
दोनों पक्षों ये समझने लगे थे कि ये परमाणु हथियारों की अत्याधिक होड़ उचित नही है ।
इस कारण दोनों पक्षों ने कुछ परमाणु हथियारों को सीमित करने का फैसला किया और हथियारों की होड़ को रोकने के लिये कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये ।
#SPJ3
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कुछ और जानें...
भारतीय विदेश नीति के कोई दो सिद्धान्त लिखिए।
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शीत युद्ध की समाप्ति के उपरांत भारत की विदेश नीति की प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए।
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Author:
katopdvr
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