जब महाभारत का युद्ध तय हुआ तो द्रोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा समेत कौरव सेना का साथ दिया। युद्ध की शुरुआत में वे एक मुख्य भूमिका में थे । युद्ध के ग्यारहवें दिन के बाद भीष्म पितामह को अर्जुन के बाणों की शारश्या पर लेटने के बाद दुर्योधन ने कर्ण के कहने पर द्रोण को कौरव सेना का प्रधान सेनापति चुना । सेनापति बनते ही दुर्योधन और शकुनि द्रोण से कहते हैं कि युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे तो युद्ध समाप्त हो जाएगा। दुर्योधन की योजना को अर्जुन पूर्ण नहीं होने देता है। कर्ण भी पांडव सेना का भारी संहार करता है। दूसरे ही दिन युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए शकुनि और दुर्योधन अर्जुन को युधिष्ठिर से बहुत दूर भेजने में समपूर्ण हो जाते हैं, लेकिन अर्जुन समय पर पहुँचकर युधिष्ठिर को बंदी बनने से बचा लेते हैं। दुर्योधन राजा भगदत्त को अर्जुन से युद्ध करने के लिए भेजता है। भगदत्त भीम को हराके अर्जुन के साथ युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर लेकर अर्जुन की रक्षा करते हैं। अर्जुन भगदत्त की आँखो की पट्टी तोड़ देता है, जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है। अर्जुन इस अवस्था में ही उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण युधिष्ठिर के लिए चक्रव्यूह रचते हैं जिसे केवल अर्जुन, श्रीकृष्ण एवं अभिमन्यु तोड़ना जानता थें। परंतु अभिमन्यु चक्रव्यूह से निकलना नहीं जानता था। युधिष्ठिर भीम आदि को अभिमन्यु के साथ भेजता है, लेकिन चक्रव्यूह के द्वार पर जयद्रथ सभी को रोक देता है। केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है। वह अकेला ही सभी कौरवों से युद्ध करता है और मारा जाता है। पुत्र अभिमन्यु का अन्याय पूर्ण तरीके से वध हुआ देखकर अर्जुन अगले दिन जयद्रथ वध करने की प्रतिज्ञा ले लेता है और ऐसा न कर पाने पर अग्नि समाधि लेने को कह देता है। युद्ध के चौदहवे दिन अर्जुन की अग्नि समाधि की बात सुनकर द्रोण कौरव के साथ मिलकर जयद्रथ को बचाने योजना बनाते हैं। द्रोण जयद्रथ को बचाने के लिए उसे सेना के पिछले भाग मे छिपा देते है, लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा किए गए सूर्यास्त के कारण जयद्रथ बाहर आ जाता है और अर्जुन और वध कर देता है। इसी दिन द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं।