➲ सिंधु घाटी सभ्यता में सामूहिक स्नान करने के लिए सामूहिक स्नानागार मिले हैं। उस समय सामूहिक स्नान किसी अनुष्ठान का प्रतीक माने जाते थे। सामूहिक स्नान के लिए विशिष्ट सामूहिक स्नानागार बनाए जाते थे, जो एक कुंड की तरह होते थे। यह कुंड लगभग 40 फुट लंबा और 25 फुट चौड़ा होता था, इसकी गहराई 7 फुट होती थी।
कुंड में उत्तर और दक्षिण से नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां बनी होती थी तथा कुंड के तीन तरफ कक्ष बने हुए पाए गए हैं। कुंड के उत्तर में एक पांत में आठ स्नानागार पाए गए हैं, जिनमें किसी स्नानागार का द्वार दूसरे स्नानागार के सामने नहीं खुलता था। यह वास्तुकला का अद्भुत नमूना था।
यह कुंड खास तरह की पक्की ईंटों से बने होते थे, जिससे इनमें से पानी ना रिस सके और बाहर का अशुद्ध पानी भी कुंड में नहीं आए। इस तरह के कुंड में तल और दीवारों पर ईंटों के बने थे और इनमें चूने और चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल किया गया है। कुंड से पानी को बाहर निकालने के लिए नालियां भी बनी होती थी जो की पक्की ईंटों से बनी होती थी।
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