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हर कलाकृति जितनी वह पढ़ी जाती है, सुनाई या दिखाई देती है उससे कहीं ज़्यादा होती है और फ़िल्म को लेकर शायद यह कुछ अधिक सत्य है'. विष्णु खरे का यह कथन अपने आप में साहित्य, कला और सिनेमा के प्रति उनके प्रेम और गहरी समझ का परिचायक है. सिनेमा जितनी कलात्मक विधा है उतनी ही तकनीक आधारित भी.
Author:
malachi15
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