माता पिता भगवान का रूप है इस्पर् लघुकथा लिखिये100-150 words​

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इस धरती पर हमारे माता-पिता ही साक्षात ईश्वर रूपी अंश हैं। माता-पिता की सेवा करना ईश्वर की आराधना का दूसरा नाम है। आज माता-पिता को गंगाजल नहीं, केवल नल के जल की जरूरत है। यदि हम समय पर उनकी प्यास बुझा सके तो इसी धरती पर स्वर्ग है। यह विचार शहर के बूंदाबहू मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दौरान पंडित रवि शास्त्री ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि एक संत ने पवित्र गंगाजल भगवान शिव पर चढ़ाने की बजाय गर्मी से तपड़ते एक बैल को पिला दिया था। जिससे भगवान ने उन्हें दर्शन देकर उनका उद्धार किया। उन्होंने कहा कि हमें हमें भगवान से संसार रूपी धन नहीं मांगना चाहिए। बल्कि यह मांगना चाहिए कि हे प्रभु मेरा चित्त निरंतर आपके चरण कमलों में लगा रहे। मैं आपको कभी भूलूं नहीं। श्रीकृश्ण की लीलाएं अनंत हैं, उनकी महिमा अपार है। उन्होंने कहा कि इस कथा का आध्यात्मिक रहस्य यह है कि जीव और परमात्मा के बीच अज्ञान व वासना का परदा है। वासना का विनाश होने पर ही कृष्ण मिलन संभव हैं। हृदय में ज्ञान का दीपक जलाने वाले गुरूदेव साक्षात भगवान ही हैं। इसलिए जीवन में किसी सदगुरू का वरण करो। बिना सदगुरू के आप परमात्म तत्व का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। उन्होंने कहा इस संसार में कई लोक हैं। भूलोक के चारों ओर अनेक द्वीप व समुद्र हैं। इन सभी में लाखों जीव निवास करते हैं। इन जीवों को भगवान से ही गति मिल रही हैं। जीव चाहे कितना भी बड़ा हो या फिर छोटा हो, जब तक उसमें प्राण हैं तभी तक वह जिंदा रह सकता है

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Explanation: इस धरती पर हमारे माता-पिता ही साक्षात ईश्वर रूपी अंश हैं। माता-पिता की सेवा करना ईश्वर की आराधना का दूसरा नाम है। आज माता-पिता को गंगाजल नहीं, केवल नल के जल की जरूरत है। यदि हम समय पर उनकी प्यास बुझा सके तो इसी धरती पर स्वर्ग है। यह विचार शहर के बूंदाबहू मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दौरान पंडित रवि शास्त्री ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि एक संत ने पवित्र गंगाजल भगवान शिव पर चढ़ाने की बजाय गर्मी से तपड़ते एक बैल को पिला दिया था। जिससे भगवान ने उन्हें दर्शन देकर उनका उद्धार किया। उन्होंने कहा कि हमें हमें भगवान से संसार रूपी धन नहीं मांगना चाहिए। बल्कि यह मांगना चाहिए कि हे प्रभु मेरा चित्त निरंतर आपके चरण कमलों में लगा रहे। मैं आपको कभी भूलूं नहीं। श्रीकृश्ण की लीलाएं अनंत हैं, उनकी महिमा अपार है। उन्होंने कहा कि इस कथा का आध्यात्मिक रहस्य यह है कि जीव और परमात्मा के बीच अज्ञान व वासना का परदा है। वासना का विनाश होने पर ही कृष्ण मिलन संभव हैं। हृदय में ज्ञान का दीपक जलाने वाले गुरूदेव साक्षात भगवान ही हैं। इसलिए जीवन में किसी सदगुरू का वरण करो। बिना सदगुरू के आप परमात्म तत्व का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। उन्होंने कहा इस संसार में कई लोक हैं। भूलोक के चारों ओर अनेक द्वीप व समुद्र हैं। इन सभी में लाखों जीव निवास करते हैं। इन जीवों को भगवान से ही गति मिल रही हैं। जीव चाहे कितना भी बड़ा हो या फिर छोटा हो, जब तक उसमें प्राण हैं तभी तक वह जिंदा रह सकता है।

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