रानी दुर्गावती पर जीवनी संस्कृत में जीवनी long jivni ​

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24 June 1564) was the ruling Queen of Gondwana from 1550 until 1564. She was born in the family of Chandel Rajput king Salibahan[1] at the fort of Mahoba ( Uttar Pradesh). Rani Durgavati's achievements further enhanced the glory of her ancestral tradition of courage and patronage.In 1542, she was married to Dalpat Shah, the adopted son of the king Sangram Shah of the Garha Kingdom. According to Abul Fazl, Dalpat Shah was the son of a Kachhwaha Rajput adopted by Raja of Gadha Mandla.[2] The Chandel and Rajgond dynasties were allied because of this marriage. This resulted in Salibahan Chandel gaining the help of the Gonds at the time of the Muslim invasion of Sher Shah Suri.

Dalpat Shah died in 1550 and due to the young age of Vir Narayan, Durgavati took the reins of the Gond kingdom. Diwan Beohar Adhar Simha and Minister Man Thakur helped the Rani in looking after the administration successfully and effectively. Rani moved her capital to Chauragarh in place of Singorgarh fort. It was a fort of strategic importance situated on the Satpura hill range.

After the death of Sher Shah, Shuja at Khan captured Malwa and was succeeded by his son Baz Bahadur in 1556.[3] After ascending to the throne, Baz attacked Rani Durgavati but the attack was repulsed.

In 1562, Akbar vanquished the Malwa ruler Baz Bahadur and conquered Malwa, made it a Mughal dominion. Consequently, the state boundary of the Rani touched the Mughal Empire.

The Rani's contemporary was a Mughal General, Khwaja Abdul Majid Asaf Khan, an ambitious man who vanquished Ramchandra, the ruler of Rewa. The prosperity of Rani Durgavati's state lured him and he invaded Rani's state after taking permission from Mughal emperor Akbar. This plan of Mughal invasion was the result of expansionism and policies of Akbar.

When the Rani heard about the attack by Asaf Khan she decided to defend her kingdom with all her might although her Diwan Beohar Adhar Simha (Adhar Kayastha) [4] pointed out the strength of Mughal forces. The Rani maintained that it was better to die respectfully than to live a disgraceful life.

To fight a defensive battle, she went to Narrai, situated between a hilly range on one side and two rivers Gaur and Narmada on the other side. It was an unequal battle with trained soldiers and modern weapons in multitude on the Mughal side and a few untrained soldiers with old weapons on the side of Rani Durgavati. Her Faujdar Arjun Das was killed in the battle and the Rani decided to lead the defense herself. As the enemy entered the valley, the soldiers of the Rani attacked them. Both sides lost some men but the Rani lost more.

At this stage, Rani reviewed her strategy with her counselors. She wanted to continue the attacks on the Mughals in the night, but her chiefs discouraged her and insisted she took on the army in open combat in nightlight. By the next morning, Asaf khan had summoned big guns. The Rani rode on her elephant Sarman and came for the battle. Her son Vir Narayan also took part in this battle. He forced the Mughal army to move back three times but at last, he got wounded and had to retire to a safe place. In the course of the battle, the Rani also got injured badly near her ear with an arrow. Another arrow pierced her neck and she lost consciousness. On regaining consciousness she perceived that defeat was imminent. Her mahout advised her to leave the battlefield but she refused and took out her dagger and killed herself on 24 June 1564. Her martyrdom day (24 June 1564) is even today commemorated as "Balidan Diwas".

Answer:

रानी दुर्गावती (5 अक्टूबर 1524 – 24 जून 1564) भारत की एक प्रसिद्ध वीरांगना थीं,जिसने मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में शासन किया।उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर के राजा पृथ्वी सिंह चंदेल के यहाँ हुआ उनका राज्य गढ़मंडला था,जिसका केंद्र जबलपुर था। उन्होने अपने विवाह के चार वर्ष बाद अपने पति गौड़ राजा दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया। इनके शासन में राज्य की बहुत उन्नति हुई। दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ्यास था। चीते के शिकार में इनकी विशेष रुचि थी। उनके राज्य का नाम [[गोंडवाना]] था जिसका केन्द्र जबलपुर था। वे इलाहाबाद के मुगल शासक आसफ़ खान से लोहा लेने के लिये प्रसिद्ध हैं।

रानी दुर्गावती का चित्र

परिचय संपादित करें

रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिवर्मन/कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। चंदेल राजपूत वंश की शाखा का ही एक भाग है ।बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था।

दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।

ऐतिहासिक परिचय संपादित करें

रानी दुर्गावती मडावी का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी।

अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।

रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने पेट में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती चंदेल ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।

जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां गोण्ड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर में स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।

रानी दुर्गावती के सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया | भारत सरकार ने 24 जून 1988 रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर एक डाक टिकट जारी कर रानी दुर्गावती को याद किया। जबलपुर में स्थित संग्रहालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया | मंडला जिले के शासकीय महाविद्यालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर ही रखा गया है। रानी दुर्गावती की याद में कई जिलों में रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं लगाई गई हैं और कई शासकीय इमारतों का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया है।

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