Explanation:
हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता में पंछी हम सभी मनुष्यों से अपनी स्वतंत्रता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि हम जो पंछी हैं खुले आकाश में उड़ने वाले पंछी है। अगर हमें किसी पिंजरे में बंद कर दिया जाए या किसी सोने के पिंजरे में ही क्यों न रखा जाए पर हम उसमें नहीं रह सकते और न उस पिंजरे में रहकर सुरीली गीत गा पाएंगे। हम उस सोने की सलाखों से टकरा टकरा कर अपने पुलकित पंखों को भी तोड़ देंगे क्योंकि हम पंछी खुले आसमान में स्वतंत्र होकर उड़ने वाले प्राणी है न कि किसी सोने के पिंजरे में कैद रहा कर अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद करने में।
पिंजरे में कैद पंछी अपने दुःख व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हम जो पंछी हैं झरना, नदी, तालाब, नाले में सदा बहने वाले शुद्ध जल को पीते हैं अगर हमें पिंजरे में बंद करके सोने की कटोरी में दाना पानी दिया जाए तो हम उसे नहीं खाएंगे और भूखे प्यासे मर जाएंगे। कटोरी में दिए गए दाना पानी से कई गुना अच्छा हमारे घोंसले में पड़े नीम के कड़वा फल हमें पसंद है।
पंछी आगे बताते हुए कहते हैं कि सोने की जंजीरों से बंधे होने के कारण हम सभी खुले आसमान में उड़ने की गति अब भूल चुके हैं अब तो बस हम उस गति को अपने सपनों में ही देख सकते हैं कि हम किस प्रकार आसमान में उड़ने के बाद पेड़ की सबसे ऊंची टहनी पर बैठकर झूला झूला करते थे।
पिंजरे में बंद पंछी अपने दर्द को बताते हुए कहते हैं कि हमारी तो बस यही इच्छा थी कि हम नीले आसमान को छू ले जहां तक नीले आसमान फैली हुई है वहां तक पहुंच सके। पर हमारे अरमान अब पूरे नहीं हो सकते। पंछी आगे कहते हैं कि हम तो नीले आसमान में उड़ते हुए अनार के दाने के समान दिखने वाले तारे को अपने चोंचों से वही खा जाते हैं पर अब यह संभव नहीं है।