मितव्ययता के विरोधाभास से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसमें किसी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत सभी लोग अपनी आय में बचत की मात्रा बढ़ा देते हैं और इससे अर्थव्यवस्था के बचत के कुल मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।
इसका मुख्य कारण यह होता है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति बढ़ने के कारण सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है और इससे निवेश गुणक भी कम हो जाता है। इसलिए आय में वृद्धि की दर भी कम हो जाती है। इस प्रकार लोगों द्वारा बचत बढ़ाने से कुल अर्थव्यवस्था की बचत बढ़े यह जरूरी नहीं होता।
यदि अधिक बचत करेंगे तो कम खर्च करेंगे। यदि लोग कम खर्च करेंगे तो व्यापार कम होगा, जिससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।