अर्थात् धर्म हमें दया करना सिखाता है और अभिमान की जड़ में पाप-भाव पलता है। अतः हमें अपने शरीर में प्राण रहने तक दया-भाव को त्यागना नहीं चाहिए। ... हर धर्म सिखाता है कि जीव पर दया-भाव रखो और कष्ट में फँसे इंसान की सहायता करो। परोपकार की भावना ही सबसे बड़ी मनुष्यता है।