Answer:
मीराबाई के बालमन में कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि यौवन काल से लेकर मृत्यु तक मीरा बाई ने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना. जोधपुर के राठौड़ रतनसिंह जी की इकलौती पुत्री मीराबाई का जन्म सोलहवीं शताब्दी में हुआ था. बचपन से ही वे कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं. मीराबाई का कृष्ण प्रेम बचपन की एक घटना की वजह से अपने चरम पर पहुंचा था.
मीराबाई ने भक्ति को एक नया आयाम दिया है. एक ऐसा स्थान जहां भगवान ही इंसान का सब कुछ होता है. दुनिया के सभी लोभ उसे मोह से विचलित नहीं कर सकते. एक अच्छा-खासा राजपाट होने के बाद भी मीराबाई वैरागी बनी रहीं. मीराजी की कृष्ण भक्ति एक अनूठी मिसाल रही है.
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरौ न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
छांड़ि दई कुल की कानि कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।
अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
दधि मथि घृत काढ़ि लियौ डारि दई छोई।
भगत देखि राजी भइ, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोई।
OR in English
It is said in her death that she melted into the heart of Krishna. Tradition relates how one day she was singing in a temple when Krishna appeared. He was so pleased with his dearest devotee that he opened up his heart to her, and Meera entered, leaving her body while in the highest state of Krishna consciousness.She expressed her deep devotion to Shri Krishna. With her ektara in hand, she sang hundreds of kirtans that she composed each full of piety, love, and dedication. Even today many people still sing her kirtans. Although she was a queen, she traded all her riches to worship Shri Krishna Bhagwan.In her poems, Sri Krishna is a yogi and lover, and she herself is a yogini ready to take her place by his side unto a spiritual marital bliss. Meera’s style combines impassioned mood, defiance, longing, anticipation, joy, and ecstasy of union, always centered on Krishna.
Explanation:
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